कछुआ संरक्षण के लिए आदर्श : नागशंकर मंदिरनागांव (असम), मई 2025 — कछुओं की विलुप्त होती प्रजातियों के संरक्षण के लिए नागशंकर मंदिर परिसर एक प्रेरणादायक उदाहरण बनकर उभरा है। यह ऐतिहासिक मंदिर, जो असम के नागांव ज़िले में स्थित है, केवल धार्मिक आस्था का केंद्र नहीं रहा, बल्कि अब यह दुर्लभ और संकटग्रस्त कछुआ प्रजातियों के लिए सुरक्षित आश्रय स्थल बन चुका है।नागशंकर मंदिर की झील, जिसे स्थानीय भाषा में "बील" कहा जाता है, में करीब 30 से अधिक कछुआ प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें से कई अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संकटग्रस्त सूची में शामिल हैं। इनमें सबसे प्रमुख हैं ब्लैक सॉफ्टशेल टर्टल (Nilssonia nigricans) और इंडियन पेंटेड टर्टल, जो IUCN की रेड लिस्ट में शामिल हैं।

धार्मिक आस्था से संरक्षण तक

स्थानीय लोगों की धार्मिक आस्था ने इस प्रयास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मंदिर में आने वाले भक्त इन कछुओं को पवित्र मानते हैं और उन्हें भोजन कराते हैं। समय के साथ, यह स्थल जैवविविधता के संरक्षण का केंद्र बन गया है। मंदिर ट्रस्ट और वन विभाग की मदद से यहाँ वैज्ञानिक ढंग से कछुओं की देखरेख की जाती है।

संरक्षण की नई मिसाल

असम राज्य जैवविविधता बोर्ड, वन विभाग, और कई पर्यावरण संगठनों ने मिलकर नागशंकर मंदिर को एक कछुआ संरक्षण मॉडल के रूप में विकसित किया है। हाल ही में यहाँ "कछुआ पुनर्वास परियोजना" के अंतर्गत कुछ कछुओं को प्राकृतिक आवास में छोड़ा गया, ताकि उनकी आबादी जंगली पारिस्थितिकी तंत्र में भी बढ़ सके।वन्यजीव विशेषज्ञों का मानना है कि नागशंकर मंदिर जैसे धार्मिक स्थलों का संरक्षण के लिए उपयोग एक नया दृष्टिकोण है, जो स्थानीय समुदाय की भागीदारी को बढ़ाता है। इस मॉडल को देश के अन्य हिस्सों में भी लागू किया जा सकता है, जहाँ धार्मिक और पारंपरिक आस्थाओं के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण को प्रोत्साहन मिल सकता है।

नागशंकर मंदिर यह सिद्ध करता है कि आस्था और पर्यावरण संरक्षण एक साथ चल सकते हैं। कछुओं के प्रति लोगों की श्रद्धा ने इस स्थल को एक सुरक्षित आवास में बदल दिया है, जो न केवल जैवविविधता को संजो रहा है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को संरक्षण का संदेश भी दे रहा है।यदि आप इस लेख को किसी समाचार पत्र, ब्लॉग, या वेबसाइट के लिए इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो मैं इसे आपकी ज़रूरत के अनुसार संपादित और विस्तारित भी कर सकता हूँ।

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