Sun, 08 Dec 2024 03:40:57 GMT
बकासत भूमि का मतलब ऐसी भूमि है जिसे किसान खुद अपनी खेती के लिए उपयोग करता है। इसे "स्वयं खेती की भूमि" या "स्व-खेती भूमि" भी कहा जाता है।
बकासत भूमि की विशेषताएँ:
- किसान का स्वामित्व:
- इस भूमि पर किसान का स्वामित्व होता है और वह खुद इसकी खेती करता है, यानी बिचौलियों या ज़मींदारों का इस पर अधिकार नहीं होता।
- ज़मींदारी प्रथा के समय:
- ब्रिटिश काल में ज़मींदारी प्रथा के तहत ज़मींदार बड़ी मात्रा में भूमि के मालिक होते थे, और किसान उनसे भूमि पट्टे पर लेकर खेती करते थे।
- लेकिन जो भूमि किसान अपने उपयोग के लिए रखता था और जिसे वह बिना किसी किराए के खुद खेती करता था, उसे बकासत भूमि कहा जाता था।
- संघर्ष का कारण:
- ज़मींदार कई बार इस भूमि को भी जबरन छीनने की कोशिश करते थे या लगान वसूलते थे।
- इसी कारण, बकासत भूमि पर अधिकार बनाए रखने के लिए किसानों ने कई आंदोलनों की शुरुआत की।
बकासत भूमि आंदोलन (1936-39):
- बकासत भूमि को बचाने और ज़मींदारों के शोषण के खिलाफ यह आंदोलन बिहार के किसानों ने किया।
- यह आंदोलन स्वामित्व और आत्मनिर्भरता की रक्षा के लिए था।
- इस आंदोलन का नेतृत्व क्षेत्र के प्रसिद्ध किसान नेता "कार्यनंद शर्मा" ने किया।
- आंदोलन में "स्वामी सहजानंद सरस्वती" जैसे बड़े किसान नेताओं का भी समर्थन था।
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