Sun, 15 Sep 2024 03:54:27 GMT

ख्वाहिश नहीं, मुझे
मशहूर होने की,"

       _आप मुझे "पहचानते" हो,_
       _बस इतना ही "काफी" है।_😇

_अच्छे ने अच्छा और_
_बुरे ने बुरा "जाना" मुझे,_

       _जिसकी जितनी "जरूरत" थी_
       _उसने उतना ही "पहचाना "मुझे!_

_जिन्दगी का "फलसफा" भी_
_कितना अजीब है,_

       _"शामें "कटती नहीं और_
 -"साल" गुजरते चले जा रहे हैं!_

_एक अजीब सी_
_'दौड़' है ये जिन्दगी,_

  -"जीत" जाओ तो कई_
-अपने "पीछे छूट" जाते हैं और_

_हार जाओ तो,_
_अपने ही "पीछे छोड़ "जाते हैं!_😥

_बैठ जाता हूँ_
_मिट्टी पे अक्सर,_

       _मुझे अपनी_
       _"औकात" अच्छी लगती है।_

_मैंने समंदर से_
_"सीखा "है जीने का तरीका,_

       _चुपचाप से "बहना "और_
       _अपनी "मौज" में रहना।_

_ऐसा नहीं कि मुझमें_
_कोई "ऐब "नहीं है,_

       _पर सच कहता हूँ_
       _मुझमें कोई "फरेब" नहीं है।_

_जल जाते हैं मेरे "अंदाज" से_,
_मेरे "दुश्मन",_

  -एक मुद्दत से मैंने_
      _न तो "मोहब्बत बदली"_ 
     _और न ही "दोस्त बदले "हैं।_

_एक "घड़ी" खरीदकर_,
_हाथ में क्या बाँध ली,_

       _"वक्त" पीछे ही_
       _पड़ गया मेरे!_😓

_सोचा था घर बनाकर_
_बैठूँगा "सुकून" से,_

 -पर घर की जरूरतों ने_
       _"मुसाफिर" बना डाला मुझे!_

_"सुकून" की बात मत कर-
-बचपन वाला, "इतवार" अब नहीं आता!_😓😥

_जीवन की "भागदौड़" में_
_क्यूँ वक्त के साथ, "रंगत "खो जाती है ?_

 -हँसती-खेलती जिन्दगी भी_
       _आम हो जाती है!_😢

_एक सबेरा था_
_जब "हँसकर "उठते थे हम,_😊

 -और आज कई बार, बिना मुस्कुराए_
       _ही "शाम" हो जाती है!_😓

_कितने "दूर" निकल गए_
_रिश्तों को निभाते-निभाते,_😘

       _खुद को "खो" दिया हमने_
       _अपनों को "पाते-पाते"।_😥

_लोग कहते हैं_
_हम "मुस्कुराते "बहुत हैं,_😊

       _और हम थक गए_,
       _"दर्द छुपाते-छुपाते"!😥😥

_खुश हूँ और सबको_
_"खुश "रखता हूँ,_

       _ *"लापरवाह" हूँ ख़ुद के लिए_*
*-मगर सबकी "परवाह" करता हूँ।_😇🙏*

*_मालूम है_*
*कोई मोल नहीं है "मेरा" फिर भी_*

  *कुछ "अनमोल" लोगों से_*
  *-"रिश्ते" रखता हूँ।*

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