कोलकाता की 17 वर्षीय श्रिजनी ने ISC 2025 परीक्षा में 400 में से 400 अंक हासिल कर न केवल शैक्षणिक उत्कृष्टता हासिल की, बल्कि एक मजबूत सामाजिक संदेश भी दिया। द फ्यूचर फाउंडेशन स्कूल की यह छात्रा अब सिर्फ अपनी अकादमिक सफलता के लिए नहीं, बल्कि अपने विचारों और साहसिक कदमों के लिए भी चर्चा में है।
उन्होंने परीक्षा फॉर्म में अपना उपनाम छोड़ दिया और धर्म के स्थान पर “मानवतावाद” को चुना—यह एक ऐसा निर्णय था जो समाज की परंपरागत पहचान की सीमाओं को चुनौती देता है।श्रिजनी ने साफ कहा है कि वे किसी भी प्रकार के भेदभाव के खिलाफ हैं—चाहे वह जातिगत हो, धार्मिक हो या लैंगिक। उनके अनुसार, समाज को जोड़ने की बजाय ये भेदभाव उसे तोड़ते हैं। इस सोच के पीछे उनके माता-पिता की स्पष्ट भूमिका है। उनकी माँ गोपा मुखर्जी गुरुदास कॉलेज में सह-प्राध्यापक हैं और पिता देबाशीष गोस्वामी इंडियन स्टैटिस्टिकल इंस्टीट्यूट में गणितज्ञ हैं, जिन्हें वर्ष 2012 में शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इन दोनों ने अपनी बेटियों के जन्म प्रमाण पत्र में कभी उपनाम नहीं डाला, ताकि वे स्वतंत्र पहचान के साथ समाज में आगे बढ़ सकें।शैक्षणिक रूप से श्रिजनी ने अंग्रेज़ी, भौतिकी, रसायन और गणित में असाधारण प्रदर्शन किया है। लेकिन उनके व्यक्तित्व की गहराई वहाँ तक सीमित नहीं। वे सामाजिक मुद्दों पर भी सक्रिय रही हैं।
14 अगस्त 2024 को उन्होंने अपने परिवार के साथ “रिक्लेम द नाइट” रैली में हिस्सा लिया, जो आर.जी. कर मेडिकल छात्रा के खिलाफ हुए अपराध के विरोध में थी। वे कहती हैं, “सड़क पर न्याय की मांग करना और पढ़ाई करना दो अलग चीज़ें नहीं—दोनों ज़रूरी हैं।”उनका लक्ष्य बेंगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISc) में भौतिकी या गणित पढ़ना है। वे मानती हैं कि विज्ञान के माध्यम से समाज में सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है। उनके अध्ययन का तरीका बहुत अनुशासित था—समय पर सिलेबस पूरा करना, नियमित अभ्यास और साथ ही शास्त्रीय संगीत और नृत्य के लिए भी समय निकालना।
उनकी इस सोच और साहसिक कदम को देखते हुए राज्य के विद्युत मंत्री और टॉलीगंज से विधायक अरूप बिस्वास ने उनके घर जाकर उन्हें बधाई दी। उनके स्कूल के प्राचार्य रंजन मित्तेर ने भी उनके निर्णय का समर्थन किया, यह स्पष्ट करते हुए कि परीक्षा फॉर्म में उपनाम देना जरूरी नहीं है।PTI से बातचीत में श्रिजनी ने कहा, “मैं हमेशा अपने नाम से जानी गई हूं। उपनाम की कोई जरूरत नहीं महसूस होती। मेरे लिए असली पहचान इंसान होने में है।” उनका यह नजरिया आज की पीढ़ी को एक नया दृष्टिकोण देता है।एक नई सोच की प्रेरणाश्रिजनी सिर्फ एक विद्यार्थी नहीं, बल्कि एक विचार हैं—जो शिक्षा को नंबरों से आगे ले जाकर सामाजिक जिम्मेदारी से जोड़ती हैं। उन्होंने दिखाया कि असली ज्ञान वही है जो सवाल उठाने और बदलाव लाने की हिम्मत दे।क्या आप चाहें कि इसे सोशल मीडिया पोस्ट, प्रेस रिलीज़, या ब्लॉग लेख के रूप में ढाला जाए?
