The Butler Committee was formed in 1927 under the chairmanship of Sir Harcourt Butler. It was appointed by Lord Irwin, the Viceroy of India at that time. The committee submitted its report in 1929.
- Official Name: Indian States Committee
- Chairman: Sir Harcourt Butler
- Appointed by: British Government
Historical Background (in Hindi):
ब्रिटिश संसद की ओर से भारत में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए समय-समय पर जांच समितियाँ भेजी जाती थीं। इसकी शुरुआत 1773 ईस्वी से हुई थी।
- पहला कानून 1773 का रेगुलेटिंग एक्ट था।
- इसके 10 साल बाद 1783 में पिट्स इंडिया एक्ट आया, जो रेगुलेटिंग एक्ट की कमियों को दूर करने के लिए लाया गया था।
- इसके बाद हर 10 साल में कमेटियाँ निरीक्षण कर संसद को रिपोर्ट भेजती थीं, जिसके आधार पर नए कानून बनते थे।
1773 से 1843 के बीच जो कानून बनते थे वे ब्रिटेन से बनाए जाते थे और उन्हें "एक्ट" कहा जाता था। उस समय भारत ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन एक उपनिवेश था, और कंपनी ही प्रेसीडेंसी/राज्य की कानून व्यवस्था देखती थी।1857 की क्रांति के बाद भारत ब्रिटिश क्राउन के अधीन आ गया। इसके बाद भारत में एक कार्यकारी परिषद की स्थापना की गई, जिसका नेतृत्व वायसरॉय करते थे। वायसरॉय भारत का प्रशासन संभालते और अपनी रिपोर्ट ब्रिटिश संसद को भेजते थे।1857 के बाद जो कानून बनते थे वे भारत में बनाए जाते थे और फिर संसद की मुहर लगने के बाद कानून का रूप लेते थे। इसलिए इन्हें भारतीय शासन अधिनियम (Government of India Acts) कहा गया।बटलर समिति की स्थापना का कारण:1919 के अधिनियम (Government of India Act 1919) के अनुसार, 10 वर्षों के भीतर उसकी समीक्षा अपेक्षित थी।
इसलिए, 1927 में, दस वर्ष पूरे होने से पहले, वायसरॉय लॉर्ड इरविन ने सर हरकर्ट बटलर की अध्यक्षता में बटलर समिति का गठन किया।
इस समिति ने भारतीय रियासतों और ब्रिटिश भारत के संबंधों की समीक्षा की और अपनी रिपोर्ट 1929 में प्रस्तुत की।
---
बटलर समिति की रिपोर्ट (1929) के प्रमुख निष्कर्ष और सिफारिशें:
बटलर समिति ने भारतीय रियासतों और ब्रिटिश सरकार के बीच संबंधों का विश्लेषण करके निम्नलिखित सिफारिशें दीं:
1. भारतीय रियासतें ब्रिटिश भारत का हिस्सा नहीं हैं – समिति ने स्पष्ट किया कि भारतीय रियासतें संप्रभु नहीं थीं, लेकिन वे ब्रिटिश भारत का हिस्सा भी नहीं थीं। उनका संबंध सीधे ब्रिटिश क्राउन से था, न कि ब्रिटिश भारत की सरकार से।
2. रियासतों के साथ संबंधों को बनाए रखने के लिए एक स्थायी नीति अपनाई जाए – समिति ने सुझाव दिया कि भारत सरकार को रियासतों के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, और इनके साथ संबंधों को संभालने की जिम्मेदारी केवल **राजस्व सचिव (Crown’s Representative)** के अधीन रहनी चाहिए।
3. ब्रिटिश भारत और रियासतों के बीच किसी भी तरह का विलय अनिवार्य नहीं होना चाहिए – समिति ने कहा कि भारतीय रियासतों को जबरन ब्रिटिश भारत में शामिल नहीं किया जाना चाहिए।
4. रियासतों के विशेषाधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए – समिति ने रियासतों की आंतरिक स्वायत्तता को मान्यता देने और उनके पारंपरिक अधिकारों की सुरक्षा की सिफारिश की।
---
निष्कर्ष:
बटलर समिति की रिपोर्ट का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश भारत और भारतीय रियासतों के बीच संबंधों को परिभाषित करना था, ताकि भविष्य में भारत की राजनीतिक संरचना में इन रियासतों की भूमिका को स्पष्ट रूप से समझा जा सके। हालांकि रियासतों ने इसमें ज्यादा रुचि नहीं दिखाई, फिर भी यह रिपोर्ट बाद में संघीय योजना (Federal Scheme) के निर्माण की आधारशिला बनी।

