तथ्य/ काल्पनिक सोच - मातृसत्तात्मक में बच्चों की पहचान मां के नाम पर होती है जैसे, मान लीजिए कही लड़कियों और औरतों की संख्या १०० है और वहां एक ही पुरुष मर्द है तो सभी स्त्रियां एक के साथ संभोग करना उनका मजबूरी होगी तो उनसे जो बच्चे पैदा होंगे उनका पहचान मां के नाम से होगा। यदि कोई पूछता है कि तुम किसके लड़के या लड़की हो तो वह मां के नाम से जाना जाएगा। हालांकि अभी हिन्दू धर्म अभी पितृसत्तात्मक चल रही है जहां बच्चे की पहचान उसके पिता से किया जाता है
रोचक और सोचने वाले तथ्य
- "जब सौ पुरुषों पर भारी पड़ी एक स्त्री: समाज की कल्पना और सच्चाई"
- "100 पुरुष, 1 स्त्री – क्या होगा पहचान का आधार?"
- "जब पिता का नाम खो जाए: मातृसत्ता की ओर बढ़ता समाज"
- "पितृसत्ता या मातृसत्ता? जब समाज का संतुलन बिगड़ जाए"
- "एक स्त्री, सौ पुरुष: पहचान, सत्ता और संघर्ष की कहानी"
यह सवाल समाजशास्त्र और मानव सभ्यता के विकास से जुड़ा एक महत्वपूर्ण और विचारणीय विषय पर है – मातृसत्तात्मक (Matrilineal) बनाम पितृसत्तात्मक (Patrilineal) समाज व्यवस्था।
🔹 क्या मातृसत्तात्मक समाज में बच्चे की पहचान मां से होती है?
हां, यह सत्य है।
मातृसत्तात्मक समाजों में वंश, संपत्ति, पहचान और विरासत मां की ओर से चलती है। यानी बच्चा किस "कुल" से है, यह उसकी मां से तय किया जाता है। इसका उदाहरण:
मेघालय के खासी, गारो और जयंतिया जनजाति
- इन समाजों में संपत्ति मां से बेटी को मिलती है, और बच्चे की पहचान भी मां के नाम से होती है।
🔹 आपने जो उदाहरण दिया – 100 महिलाएं और 1 पुरुष – यह समाजशास्त्रीय कल्पना है या वास्तविकता?
आपका उदाहरण एक काल्पनिक परिदृश्य (hypothetical scenario) है जो यह समझाने के लिए दिया गया है कि जब पिता की पहचान निश्चित न हो (जैसे एक ही पुरुष कई स्त्रियों के साथ संबंध बनाता हो), तब बच्चे की पहचान मां से करना स्वाभाविक और सामाजिक रूप से व्यावहारिक होता है।ऐतिहासिक रूप से, ऐसी स्थिति आदिम समाजों (prehistoric tribes) में पाई गई होगी, जब स्थायी विवाह की परंपरा नहीं थी और यौन संबंधों की संरचना अस्थायी थी।
🔹 वर्तमान में हिंदू समाज पितृसत्तात्मक है – यह भी सत्य है:
- बच्चे के नाम में पिता का नाम जोड़ा जाता है।
- वंश और गोत्र पिता की ओर से चलता है।
- संपत्ति में अधिकार, पारंपरिक रूप से बेटों को मिलता था (हालांकि अब कानून में बेटियों को भी समान अधिकार है)।
- कुलदेवता, श्राद्ध आदि, सब पितृवंश पर आधारित होते हैं।
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एक तार्किक प्रश्न है — "अगर 100 पुरुष और केवल 1 स्त्री हो, तब समाज कैसा होगा? मातृसत्तात्मक या पितृसत्तात्मक?"
🔹 स्थिति: 100 पुरुष और 1 स्त्री
प्रजनन क्षमता (Biological Reality):
- केवल वही एक स्त्री गर्भधारण कर सकती है।
- एक बार में वह एक ही पुरुष से गर्भवती होगी, बाकी पुरुष जैविक रूप से बच्चे के पिता नहीं होंगे।
- इस परिस्थिति में हर पुरुष की संतान उत्पन्न करने की इच्छा अधूरी रहेगी।
🔸 नतीजा:
- बच्चा किस पुरुष का है, यह स्पष्ट हो सकता है यदि वह स्त्री केवल एक के साथ संबंध रखे। लेकिन अगर वह कई पुरुषों के साथ संबंध बनाती है, तो पिता की पहचान अनिश्चित हो सकती है। पर आज के युग में जैसे DNA जांच आदि से तो पहचान पिता से भी हो सकती है।
🔹 निष्कर्ष:
👉 आपका उदाहरण (100 स्त्रियां, 1 पुरुष) यह समझाने के लिए उपयुक्त है कि जब पिता की पहचान सुनिश्चित न हो, तो मातृसत्तात्मक संरचना ही व्यावहारिक और सामाजिक रूप से उपयोगी होती ह
ध्यान देने योग्य बातें:
- मातृसत्तात्मकता या पितृसत्तात्मकता केवल सेक्स अनुपात से तय नहीं होती। यह तय होती है:
- संपत्ति किसे मिलती है
- वंश किससे चलता है
- सामाजिक निर्णयों में किसकी भूमिका है
समाजशास्त्र
मातृस्थानीय परिवार क्या है ?
जब लड़का विवाह के पश्चात अपनी पत्नी के परिवार में जाकर बस जाता है, तो ऐसे परिवार को मातृस्थानीय परिवार कहते हैं। जैसे- भारत में नायर, खासी, गारो आदि जनजातियां
पितृस्थानीय परिवार क्या है ?
विवाह के पश्चात यदि पति अपनी पत्नी को अपने परिवार में रख लेता है, तो ऐसे परिवार को पितृस्थानीय
परिवार कहा जाता है। जैसे- भारतीय हिंदू परिवार तथा खरिया, भील आदि जनजातियां
नवस्थानीय परिवार क्या है ?
विवाह के पश्चात कुछ पति-पत्नी अपना परिवार अलग बसा लेते हैं, ऐसे परिवार को नवस्थानीय परिवार कहते हैं।
