जब संसद या विधान सभा की बैठक में यह बात उठे कि सभापति (Speaker) या उपसभापति (Deputy Speaker) को उनके पद से हटाना चाहिए, यानी उनको उनका पद छोड़ना पड़ेगा, तो उस समय ये नियम लागू होता है।
क्या होता है?
- जब ऐसा प्रस्ताव या संकल्प सदन में रखा जाता है कि सभापति या उपसभापति को हटाया जाए, तो वे उस प्रस्ताव पर चर्चा या वोटिंग के दौरान खुद अध्यक्ष नहीं रहेंगे।
- इसका मतलब है कि वे उस समय सदन की बैठक की अगुवाई नहीं करेंगे।
- वे अपनी जगह किसी और सदस्य को बैठक की अध्यक्षता करने देंगे।
- ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि बैठक निष्पक्ष और सही ढंग से चल सके, क्योंकि अगर वे खुद अध्यक्षता करें तो मामला प्रभावित हो सकता है।
क्यों ज़रूरी है यह नियम?
न्यायपूर्णता (Fairness): अगर किसी के खिलाफ प्रस्ताव हो, तो वे खुद बहस और वोटिंग नहीं संभालेंगे ताकि निष्पक्षता बनी रहे।
संघर्ष से बचाव: इससे झगड़े या विवाद कम होंगे क्योंकि फैसले सही प्रक्रिया से होंगे।
संसदीय मर्यादा: संसद या विधानसभा के कामकाज में अनुशासन और आदर बना रहता है।
उदाहरण से समझें:
मान लीजिए कोई विधायक कहता है, "सभापति को उनके पद से हटाया जाए क्योंकि वे ठीक से काम नहीं कर रहे।"
इस प्रस्ताव पर चर्चा और वोटिंग होनी है। ऐसे में सभापति खुद बैठक की अध्यक्षता नहीं करेंगे। बैठक का नेतृत्व कोई अन्य सदस्य करेगा ताकि निर्णय निष्पक्ष हो।
अनुच्छेद 92 (Article) का सरल अर्थ:
जब सभापति (Speaker) या उपसभापति (Deputy Speaker) को उनके पद से हटाने का प्रस्ताव सदन में चल रहा हो, तो उस समय वे सदन की अध्यक्षता नहीं करेंगे।
मतलब, जब कोई सदस्य ये कह रहा हो कि उन्हें उनका पद छोड़ देना चाहिए, तब वे खुद बैठक की अगुवाई नहीं करेंगे।
उनकी जगह कोई और सदस्य बैठक की अध्यक्षता करेगा ताकि मामला निष्पक्ष और ठीक तरीके से देखा जाए।
- जब सभापति या उपसभापति को हटाने की बात चल रही हो,
- तब वे खुद सदन की बैठक की अध्यक्षता नहीं करेंगे,
- बल्कि किसी और को अध्यक्ष बनाएंगे,
- ताकि सभी को बराबर मौका मिले और निर्णय सही तरीके से हो।
